शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2015

घनानन्द की काव्य-पंक्तियाँ/

अति सुधो सनेह को मारग है
जहां नेकू सयानप बांक नहीं।

लोग हैं लागि कवित्त बनावत
मोहि तौ मोरे कवित्त बनावत।

देह दहै न रहै सुधि गेह की,
भूलि हूँ नाह को नाम न लीजै।

कंत रमे उर अंतर में सुलहै नहिं क्यों सुखराशि निरन्तर।

मोहि तुम एक, तुम्हैं मो सम एनेक आहि,
कहा कछु चन्दहि चकोरनकी कमी है।

ह्वै है सोउ घरी भाग उघरी

आनन्द विधान सुखदानि दुखियान दे।

कान्ह परे बहुतायत में इकलैन की वेदन जानो कहा तुम।

उजरनि बसी है हमारी अँखियन देखौ।

यहाँ साँचे चलै तजि आपनपौ
झिझकैं कपटी जेनिसांक नहीं।

हिय आँखिन नेह की पीर तकी।

बिछुरै मिलैं मीन पतंग दशा कहाँ मो जिय गति को परसै।


                             

प्रस्तुति : मुहम्मद इलियास हुसैन
hindisahityavimarsh.blogspot.in

_घनानन्द की काव्य-पंक्तियाँ 
घनानन्द की काव्य-पंक्तियाँ https://www.google.co.in/

1 टिप्पणी:

  1. हिंदी साहित्य मे उल्लेखित किसी भी लेख या कविता के उन दस अंशो या कविता पंक्ति का उल्लेख करो जो आपको अत्यन्त मामिर्क लगी यह भी उल्लेख करे कि वह आपके अंतकरण को क्यो छु गयी ?

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